28-11-97  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

बेहद की सेवा का साधन - रूहानी पर्सनालिटी द्वारा नज़र से निहाल करना

आज बापदादा अपने अनेक कल्प के मिलन मनाने वाले लाडले, सिकीलधे बच्चों से फिर से मिलन मनाने आये हैं। अव्यक्त मिलन तो सदा मनाते ही हो लेकिन अव्यक्त से व्यक्त रूप में मिलन मनाने के लिए सभी बच्चे भारत वा विदेश से फिर से अपने घर पहुंच गये हैं। बापदादा देख रहे हैं कि चारों ओर बच्चे अपने-अपने स्थान पर भी मिलन मना रहे हैं। यह मिलन रूहानी अलौकिक मिलन है। इस मिलन में बापदादा और बच्चों के स्नेह का साकार स्वरूप है।

आज बापदादा अपने बच्चों की रूहानी पर्सनालिटी को देख रहे हैं। हर एक बच्चे की रूहानी पर्सनालिटी कितनी श्रेष्ठ है। ऐसी रूहानी पर्सनालिटी सारे कल्प में और किसी की भी नहीं है क्योंकि आप सबकी पर्सनालिटी बनाने वाला ऊंचे ते ऊंचा बाप है। आप भी अपनी रूहानी पर्सनालिटी को जानते हैं ना? सबसे बड़े ते बड़ी पर्सनालिटी है - स्वप्न वा संकल्प में भी सम्पूर्ण प्युरिटी की पर्सनालिटी। नम्बरवार है लेकिन फिर भी विश्व की सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ है। तो बापदादा हर एक के मस्तक से पर्सनालिटी की झलक देख रहे हैं। प्युरिटी के साथ-साथ सबके चेहरे और चलन में रूहानियत की भी पर्सनालिटी है। और पर्सनालिटी क्या होती है? जो खज़ानों से सम्पन्न होते हैं, उसकी भी पर्सनालिटी होती है लेकिन कितने भी बड़े-बड़े सम्पन्न आत्मायें हों, आपके आगे वह सम्पन्न आत्मायें भी कुछ नहीं हैं क्योंकि वह भी अविनाशी सुख-शान्ति के खज़ाने से खाली हैं। आपके पास जो सम्पत्ति है उसके आगे अरब-खरब-पति भी बाप से सुख-शान्ति मांगने वाले हैं और आप सदा अविनाशी खज़ानों से भरपूर हो। वह खज़ाने आज हैं कल नहीं लेकिन आपका खज़ाना न कोई लूट सकता है, न कोई आत्मा खज़ाने को हिला सकती है। अखुट है, अखण्ड है। ऐसी पर्सनालिटी वाले आप बच्चे हो। सबसे ऊंचे ते ऊंची पर्सनालिटी वाले फिर भी आत्माओं द्वारा, विनाशी धन द्वारा, विनाशी आक्यूपेशन द्वारा पर्सनालिटीज़ बनती हैं वा कहलाई जाती हैं। लेकिन आपको ऊंचे ते ऊंचे परम आत्मा ने श्रेष्ठ पर्सनालिटी वाले बना दिया। तो अपने ऊंची पर्सनालिटी का रूहानी नशा रहता है? रहता है तो हाथ हिलाओ।

बापदादा को इतने श्रेष्ठ पर्सनालिटी वाले बच्चे देख कितनी खुशी होती है। आपको भी होती है? बापदादा बच्चों की ऐसी श्रेष्ठता को देख क्या गीत गाते हैं, जानते हो? आप भी गाते हैं, बाप भी गाते हैं। बाप का गीत सुनाई देता है या टेप का गीत सुनाई देता है? बापदादा की टेप न्यारी होगी ना, आटोमेटिक है। चलाने की मेहनत नहीं करनी पड़ती। और दिल का गीत दिल वाले ही सुन सकते हैं। सिर्फ कान वाले नहीं, दिल वाले। तो सभी दिल वाले हो ना? दिलवाला मन्दिर में आपका चित्र है ना? सभी ने अपना चित्र देखा है? बापदादा तो सदा बच्चों के चित्र और चरित्र देखते रहते हैं। तो आज पर्सनालिटी को देख रहे थे। सदा यह पर्सनालिटी स्मृति में इमर्ज रहे। है ही, नहीं। है, दिखाई देवे। अनुभव में आये। सदा ऐसी पर्सनालिटी में रहने वाले की निशानी क्या होगी? जिस निशानी से समझ जाएं कि यह अपने पर्सनालिटी में है? अगर यह रूहानी पर्सनालिटी इमर्ज रूप में रहती है तो उनके नयन, उनका चेहरा, चलन, संकल्प और सम्बन्ध सब प्रसन्नता वाले होंगे। सदा प्रसन्नचित, प्रश्निचित्त नहीं, प्रसन्निचित। अगर प्रश्नचित है तो चलन भी पर्सनालिटी वाली नहीं। चेहरे पर भी प्रसन्नता की झलक नहीं। कुछ भी हो जाए, पर्सनालिटी वाले की प्रसन्नता छिप नहीं सकती। मर्ज नहीं हो सकती। प्रसन्नचित आत्मा; कोई कैसी भी आत्मा परेशान हो, अशान्त हो उसको अपने प्रसन्नता की नज़र से प्रसन्न कर देगी। जो बाप का गायन है ‘‘नजर से निहाल करने वाले'', वह सिर्फ बाप का नहीं है आपका भी यही गायन है। और अभी समय प्रमाण जितना समय समीप आ रहा है तो नज़र से निहाल करने की सेवा करने का समय आयेगा। सात दिन का कोर्स नहीं होगा, एक नज़र से प्रसन्नचित हो जायेंगे। दिल की आश आप द्वारा पूर्ण हो जायेगी। तो सभी क्या समझते हो? आदि सेवा के रत्न क्या समझते हैं? ऐसी सेवा कर सकते हो ना?

अभी देखो आप लोगों ने 40 वर्ष सेवा की या ज्यादा भी की, कोई का एक दो साल कम भी होगा, किसका ज्यादा भी होगा। अभी आप लोगों ने अपने साथियों को यह सेवा सिखा दी और निमित्त भी बना दिया। अभी आप क्या करेंगे? वो सेवा तो वह भी कर रहे हैं। आप आदि रत्न हो तो न्यारी और प्यारी सेवा करेंगे ना? अभी फिर उत्सव मनायेंगे कि नज़र से निहाल कितने किये। 9 लाख में से कितने बनाये? आगे तो 33 करोड़ भी हैं, 9 लाख तो उसके आगे कुछ नहीं हैं। बीज तो यहाँ ही डालना है ना? तो देखेंगे कि आदि सेवा के रत्न अब और क्या कमाल दिखाते हैं। यह कमाल तो दिखाई, सेवाकेन्द्र बनाये, अच्छे-अच्छे प्रोग्राम किये, उसकी तो पदमगुणा मुबारक है। दो प्रकार के बच्चे हैं जो पहले वाले हैं वह हैं स्थापना के निमित्त बच्चे और आप लोग हो विशेष सेवा के आदि के बच्चे। यह (दादियां) हैं जड़ स्थापना वाले और आप सब (सेवा के आदि रत्न) हैं पहला-पहला तना। तो तना तो मजबूत होता है ना। तना पर ही सब आधार होता है। तना से ही सब शाखायें निकलती हैं। जड़ वाले तो सूक्ष्म में शक्ति देते हैं लेकिन जो प्रैक्टिकल में होता है, दिखाई देता है, वह तना दिखाई देता है। तो दादियां अभी गुप्त हो गई हैं, सकाश देने वाली और प्रैक्टिकल में स्टेज पर आने वाले आप निमित्त बनें, (सम्मान समारोह में आई हुई सभी बड़ी बहिनों से बापदादा ने हाथ उठवाया) इसीलिए बापदादा काम दे रहे हैं। समारोह तो बहुत अच्छा मनाया ना। बापदादा ने सब देखा। सजी हुई मूर्तियों को देखा। उस समय तो आप लोगों को भी यही रूहानी अनुभव हो रहा था कि हम चैतन्य मूर्तियां हैं। ऐसे ही लग रहा था जैसे सजी हुई मूर्तियां मन्दिरों से शान्तिवन में पहुंच गई हैं।

तो बापदादा अभी बच्चों से चाहते हैं कि अभी फास्ट सेवा शुरू करो। जो हुआ वह बहुत अच्छा। अब समय प्रमाण औरों को ज्यादा वाणी का चांस दो। अभी औरों को माइक बनाओ, आप माइट बनके सकाश दो। तो आपकी सकाश और उन्हों की वाणी, यह डबल काम करेगी। तब ही 9 लाख सहज बन जायेंगे। अभी आप सभी चाहे फंक्शन में बैठे या और भी महारथी हैं तो महारथियों की अभी सेवा है - सर्व को सकाश देना। बेहद की सेवा के मैदान में आना। जब बाप अव्यक्त वतन, एक स्थान पर बैठे चारों ओर के विश्व के बच्चों की पालना कर सकते हैं, कर रहे हैं तो क्या आप एक स्थान पर बैठे बाप समान बेहद की सेवा नहीं कर सकते हो? आदि रत्न अर्थात् फॉलो फादर। बेहद में सकाश दो। कई बच्चे अपने से भी पूछते हैं और आपस में भी पूछते हैं कि बेहद का वैराग्य कैसे आयेगा? दिखाई तो देता नहीं है, लेकिन बेहद की सेवा में अपने को बिजी रखो तो बेहद का वैराग्य स्वत: ही आयेगा क्योंकि यह सकाश देने की सेवा निरन्तर कर सकते हो, इसमें तबियत की बात, समय की बात - यह सहज हो जाती है। दिन रात इस बेहद की सेवा में लग सकते हो। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा रात को भी कैसे आंख खुली और बेहद की सकाश देने की सेवा होती रही। तो यह बेहद की सेवा इतना बिजी कर देगी जो बेहद का वैराग्य स्वत: ही दिल से आयेगा। प्रोग्राम से नहीं। यह करें, यह करें - यह प्लैन तो बनाते हो, लेकिन बिजी बेहद की सेवा में रहना - यह सबसे सहज साधन है क्योंकि जब बेहद को सकाश देंगे तो नजदीक वाले तो ऑटोमेटिक सकाश लेते रहेंगे। इस बेहद की सकाश देने से वायुमण्डल ऑटोमेटिक बनेगा। अभी यह नहीं सोचो कि इतने सेन्टर के जिम्मेवार हैं वा ज़ोन के जिम्मेवार हैं! आप सभी को स्टेट के राजा बनना है या विश्व का? क्या बनना है? विश्व का ना? आदि रत्न हो तो विश्व को सकाश देने वाले बनो। अगर 20 सेन्टर, 30 सेन्टर या दो अढ़ाई सौ सेन्टर या जोन, यह बुद्धि में रहेगा तो यह भी तना का काम नहीं है। यह तो टाल टालियां भी कर सकती हैं। आप तो तना हो। तना से सबको सकाश पहुंचती है। आप सभी भी यह सोचते हो कि बेहद का वैराग्य आना चाहिए, यह तो बहुत अच्छा। अभी विनाश हो जाए। लेकिन 9 लाख ही तैयार नहीं किये, तो सतयुग के आदि में आने वाली संख्या ही तैयार नहीं है और विनाश हो गया तो कौन आयेगा? क्या 2-3 हजार पर राज्य करेंगे? 4- 5 लाख पर राज्य करेंगे? इसलिए अब बेहद की सेवा का पार्ट प्रारंभ करो। पाण्डव क्या समझते हैं? बेहद की सेवा करेंगे ना? पाण्डव तैयार हैं? अभी यह हद की बातें बेहद में जाने से आपेही छूट जायेंगी। छुड़ाने से नहीं छूटेंगी। बेहद की सकाश से परिवर्तन होना फास्ट सेवा का रिजल्ट है।

बापदादा जानते हैं कि नाज़ुक परिस्थितियों में निमित्त बनी आत्माओं ने सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण दिया है। लेकिन आप सभी का फाउण्डेशन वा सेकण्ड का परिवर्तन का मूल अनुभव यही है कि ब्रह्मा बाप को देखा और ब्राह्मण बन गये। सेवा का वरदान मिला और सेवा में लग गये। बापदादा ने सभी के अनुभव भी सुने। अच्छे अनुभव सुनाये। तो जैसे आप लोगों का अनुभव है, ब्रह्मा बाप को देखा और सोचना भी नहीं पड़ा। सहन करने का भी अनुभव नहीं हुआ कि सहन कर रहे हैं। बड़ी बात नहीं लगी। ऐसे अभी हर श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा को देखें और आत्मा में (ब्राह्मण में) ब्रह्मा बाप देखें। यह है सेवा का फास्ट साधन, क्या ब्रह्मा बाप ने आपको कोर्स कराया? कोर्स तो पीछे किया। लेकिन देखा और हो गये। तो जैसे ब्रह्मा बाप में बाप समाया हुआ था इसीलिए मेहनत नहीं लगी। ऐसे आप सभी भी बापदादा को अपने में समाते हुए नज़र से निहाल करो। जो आप सबका अनुभव है, अनुभवी हो। देखा और फ़िदा हो गये। जैसे अभी सोचते हैं, ट्रेनिंग लेते हैं फिर ट्रायल पर आते हैं, फिर कोई चला जाता है कोई रहता है। इतनी मेहनत आपने ली? ट्रेनिंग की क्या? ट्रायल पर रहे क्या? बस आये और खो गये। ऐसी सेवा जब एक ब्रह्मा बाप ने की तो आप इतने ब्राह्मण आत्मायें नहीं कर सकती हो क्या? आपकी पर्सनालिटी अपना बना दे। ब्रह्मा बाप की भी पर्सनालिटी थी ना। चाहे सूरत की, चाहे सीरत की लेकिन पर्सनालिटी थी तब आकर्षित हुए। तो फॉलो फादर। जब बाप ने आपको आदि में निमित्त बनाया तो जो आदि के हैं, सेवा के निमित्त वा स्थापना के फाउण्डेशन उनको अन्त तक सेवा में रहना ही है। तबियत के कारण शरीर से चक्कर नहीं लगा सकते लेकिन मन से तो लगा सकते हो? उसमें तो खर्चा भी नहीं, वीज़ा लेने की भी जरूरत नहीं। भाग दौड़ की भी जरूरत नहीं। लेटे-लेटे भी कर सकते हो। क्या समझते हो? अब ऐसा कोई प्लैन बनाओ। नया पाठ शुरू करो। अभी एक फंक्शन तो मना लिया ना। जो सेवा की उसका प्रत्यक्ष फल मिल गया। अभी नई सेवा करो। अच्छा।

बापदादा सिर्फ सामने वालों को नहीं कह रहे हैं, सभी बच्चों को कह रहे हैं। विदेश में भी जो सुन रहे हैं उन्हों को भी कह रहे हैं। जहाँ भी सुन रहे हैं, चाहे शान्तिवन में सुन रहे हैं, चाहे ऊपर पाण्डव भवन में, चाहे विदेश में, जहाँ भी हैं वहाँ बापदादा सभी के लिए कह रहे हैं। अब बेहद के सेवाधारी बनो। समय बेहद की सेवा में लगाओ। बेहद की सेवा में समय लगाने से समस्या सहज ही भाग जायेगी क्योंकि चाहे अज्ञानी आत्मायें हैं, चाहे ब्राह्मण आत्मायें हैं लेकिन अगर समस्या में समय लगाते हैं वा दूसरों का समय लेते हैं तो सिद्ध है कि वह कमजोर आत्मायें हैं, अपनी शक्ति नहीं है। जिसको शक्ति नहीं हो, पांव लंगड़ा हो और उसको आप कहो दौड़ लगाओ, तो लगायेगा या गिरेगा? तो समस्या के वश आत्मायें चाहे ब्राह्मण भी हैं लेकिन कमजोर हैं, शक्ति नहीं है, तो वह कहाँ से शक्ति लायें? बाप से डायरेक्ट शक्ति ले नहीं सकता क्योंकि कमजोर आत्मा है। तो क्या करेंगे? कमजोर आत्मा को दूसरे कोई का ब्लड देकर ताकत में लाते हैं, कोई शक्तिशाली इन्जेक्शन देकर ताकत में लाते हैं, तो आप सबमें शक्तियां हैं। तो शक्ति का सहयोग दो, गुण का सहयोग दो। उन्हों में है ही नहीं, अपना दो। पहले भी कहा ना - दाता बनो। वह असमर्थ हैं, उन्हों को समर्थी दो। गुण और शक्ति का सहयोग देने से आपको दुआयें मिलेंगी और दुआयें लिफ्ट से भी तेज राकेट हैं। आपको पुरूषार्थ में समय भी देना नहीं पड़ेगा, दुआओं के रॉकेट से उड़ते जायेंगे। पुरूषार्थ की मेहनत के बजाए संगम के प्रालब्ध का अनुभव करेंगे। दुआयें लेना - वह सीखो और सिखाओ। अपना नेचरल अटेन्शन और दुआयें, अटेन्शन भी टेन्शन मिक्स नहीं होना चाहिए, नेचरल हो। नॉलेज का दर्पण सदा सामने है ही। उसमें स्वत: सहज अपना चित्र दिखाई देता ही रहेगा। इसीलिए कहा कि पर्सनालिटी की निशानी है प्रसन्नचित। यह क्यों, क्या, कैसे। यह के के की भाषा समाप्त। दुआयें लेना और देना सीखो। प्रसन्न रहना और प्रसन्न करना - यह है दुआयें देना और दुआयें लेना। कैसा भी हो आपकी दिल से हर आत्मा के प्रति हर समय दुआयें निकलती रहें - इसका भी कल्याण हो। इसकी भी बुद्धि शान्त हो। यह ऐसा, यह वैसा - ऐसा नहीं। सब अच्छा। यह हो सकता है? दुआयें देने आती हैं? लेने तो आती हैं, देने भी आती हैं? देंगे नहीं तो लेंगे कैसे? दो और लो। यह करे नहीं, मैं करूं। ब्रह्मा बाप का सदा स्लोगन रहा, ब्रह्मा बाप बार-बार याद दिलाते रहे - जो कर्म मैं करूंगा, मुझे देख और करेंगे। जब दूसरे करेंगे तब मैं करूंगा .... यह स्लोगन नहीं। जो मैं करूंगा मुझे देख और करेंगे। नहीं तो स्लोगन चेंज कर दो और जगदम्बा माँ का विशेष स्लोगन रहा - हुक्मी हुक्म चला रहा है। वह चला रहा है, हम निमित्त बन चल रहे हैं। तो दोनों स्लोगन सदा याद रखो, इमर्ज। है ही, सुना है ... याद तो रहता है...., नहीं। कर्म में दिखाई दे। तो क्या करेंगे? दुआयें लेंगे, दुआयें देंगे कि ग्लानी करेंगे, फील करेंगे - यह ऐसा, यह वैसा? नहीं। उसको दुआयें दो। कमजोर है, वशीभूत है। भाषा और संकल्प बदली करो। यह संकल्प मात्र भी न हो कि यह बदले, नहीं। मैं बदलूं। और बातों में तो मैं मैं का आता है लेकिन जिस बात में मैं आना चाहिए, उसमें और करे तो करें, यह क्या? अच्छा काम होगा तो कहेंगे मैं। और ऐसा कोई काम होगा तो कहेंगे इसने किया, इसने कहा। उल्टा हो गया ना। कोई क्या भी करता है, मुझे क्या करना है, मुझे क्या सोचना है, मुझे क्या कहना है, इसमें मैं-पन लाओ। बॉडी कान्सेस वाला मैं नहीं, सेवा का मैं। तो ऐसे ही श्रेष्ठ वायब्रेशन फैलाओ। अभी वाणी कम काम करती है, दिल का सहयोग, दिल के वायब्रेशन बहुत जल्दी काम कर सकते हैं। तो यह हो सकता है?

अगर हो सकता है तो शुभ कार्य में देरी क्यों? अब से हो सकता है? पाण्डव सुनाओ। फिर वहाँ जाकर नहीं बदल जाना। वहाँ जाकर कहेंगे - बापदादा तो कहते हैं लेकिन साकार में तो हम हैं ना। बापदादा को क्या पता, क्या होता है। ऐसे नहीं कहना। मातायें क्या कहेंगी? बापदादा बच्चों को सम्भाले तो पता पड़े, ऐसे सोचेंगी? बापदादा ने आप बड़ों को सम्भाला, छोटे क्या बड़ी बात हैं। तो वहाँ जाकर बदल नहीं जाना। आप लोगों का एक गीत है ना - बदल जाए दुनिया न बदलेंगे हम। यह गीत पक्का है, राइट है? अगर ठीक है तो हाथ उठाओ। फिर तो आपकी जो 21वीं सेंचुरी की कांफ्रेंस है ना वह प्रैक्टिकल हो जायेगी। ठीक है ना! प्रैक्टिकल में सृष्टि को नक्शा दिखाओ। यह होगा, होगा नहीं, हो गया है। क्या हुआ? अगर मानों आपने ग्लानी या डिस्टर्बेंस सहन भी कर लिया, समा भी लिया तो आपका सहन करना, समाना, आपके लिए अपनी राजधानी निश्चित होना। आपको क्या नुकसान हुआ? फायदा ही हुआ। देखने में आता है - बड़ा मुश्किल है। बात बहुत बड़ी है लेकिन आपने सहन किया, समाया और आपका स्टैम्प लग गया, आपकी राजधानी बन गई। तो फायदा हुआ या नुकसान हुआ?

अभी इस सीज़न में बापदादा ऐसा चारों ओर का स्वरूप देखने चाहते हैं। हर सीजन में वही बातें सुनना अच्छा नहीं लगता। वही कथायें, कथायें, कथायें... तो बापदादा भी बच्चों से प्रश्न करते हैं कि आखिर यह बातें कब तक? या तो समय बता दो कि एक साल और चाहिए, दो साल और चाहिए। इसकी भी डेट तो फिक्स करो। फंक्शन की डेट तो जल्दी फिक्स हो गई। सभी के फंक्शन की डेट फिक्स कर ली है, इस फंक्शन की डेट कौन सी है?

सभी दूर-दूर से प्यार से आये हैं। बापदादा विदेश को भी देख रहा है। भिन्न टाइम होते भी बहुत प्यार से समय देकर सुन रहे हैं। (विदेश में 200 स्थानों पर सैटलाइट द्वारा मुरली सुन रहे हैं) देखो यह भी फास्ट गति है ना। यहाँ का आवाज़ विदेश में 200 स्थान पर पहुंच रहा है, यह भी आवाज़ की गति फास्ट है ना। यह भी इन्वेन्शन है ना। तो आप साइलेन्स के पावर की गति फास्ट नहीं कर सकते हो? साइन्स ने भारत का आवाज़ विदेश तक पहुंचाया और आप स्वप्न व संकल्प की पवित्रता ही सबसे बड़े से बड़ी पर्सनालिटी है। 77 अपने दिल की शुभ भावनायें आत्माओं को नहीं पहुंचा सकते हो! पहुंचा सकते हैं ना? नहीं तो साइन्स आगे चली जायेगी, साइलेन्स की पावर थोड़ा कम दिखाई देगी। इसलिए साइलेन्स की शक्ति को प्रत्यक्ष करो। सभी में है। एक ब्राह्मण भी नहीं है जो कहे कि मेरे में साइलेन्स की शक्ति नहीं है। सभी में है, कितने ब्राह्मण हैं? इतने ब्राह्मणों की सकाश क्या नहीं कर सकती? सभी में साइलेन्स की शक्ति है? तो अभी एक मिनट में सभी अपने साइलेन्स की शक्ति इमर्ज करो। एकदम साइलेन्स मन से, तन से इमर्ज करो।

(बापदादा ने डेड साइलेन्स की ड्रिल करवाई) अच्छा।

चारों ओर के सर्व विशेष आत्माओं को सदा रूहानी पर्सनालिटी के नशे में रहने वाली आत्माओं को, सदा बेहद की सेवा में स्वयं को बिजी रखने वाली निमित्त विश्व कल्याणकारी आत्माओं को, सदा ब्रह्मा बाप और जगदम्बा का स्लोगन साकार में लाने वाली, ऊंच ते ऊंच नज़र से निहाल करने की सेवा में सदा रहने वाली बाप समान आत्माओं को बापदादा और जगदम्बा माँ का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों तथा बड़े भाईयों से

सभी का दिल का उमंग-उत्साह बहुत अच्छा है। अभी दिल का उमंग- उत्साह इमर्ज करना है। संकल्प बहुत अच्छे-अच्छे करते हैं। लेकिन प्रैक्टिकल में आने में समाने की शक्ति और कल्याण की भावना इसको इमर्ज करना पड़ेगा, तभी संकल्प साकार में होंगे। यह बातें तो एक सागर की लहरे हैं, लहरों को क्या देखना। वह तो अभी-अभी उठती हैं अभी-अभी मर्ज हो जाती हैं। लेकिन सागर समान समाने की शक्ति, साइलेन्स की पावर की शक्ति रत्न पैदा करेगी। तो अच्छा है। अभी आप लोगों की सकाश चाहिए। कमजोरों को बल दो। अपने पुरूषार्थ का समय दूसरों को सहयोग देने में लगाओ। तो आपका पुरूषार्थ स्वत: ही जमा होता जायेगा। दूसरों को सहयोग देना अर्थात् अपना जमा करना। अभी ऐसी लहर फैलाओ - देना है, देना है, देना ही देना है। सैलवेशन लेना नहीं है, सैलवेशन देना है। देने में लेना समाया हुआ है। ठीक है ना। फाउण्डेशन तो पक्का है। बापदादा की सकाश तो है ही। अभी आप आत्माओं के सकाश की आवश्यकता है। बाप की डायरेक्ट इतनी पावर लेने की हिम्मत नहीं है, बाप तो दे रहे हैं लेकिन कमजोर आत्मा ले नहीं पाती है, उन्हों को आप लोगों का सहयोग चाहिए। बस पाठ पक्का कर लो - आज के दिन कितनी आत्माओं को नि:स्वार्थ सहयोग दिया। आप देना शुरू करेंगे, करते भी हो लेकिन और अन्डरलाइन। तो सबके पास वह लहर फैलेगी।

(भूपाल भाई से)- शान्तिवन कितना बड़ा हो गया। अब सारे भारत के सेवाकेन्द्रों से, पाण्डव भवन से, ज्ञान सरोवर से, चारों ओर से शान्तिवन बड़ा हो गया है। तो बड़ी दिल। अच्छा है, मेहनत भी अच्छी कर रहे हैं।

अभी यू.पी. का टर्न है ना। यू.पी. वाले हाथ उठाओ, जो सेवा में हैं खड़े हो जाओ। बहुत अच्छा। सेवा का प्रत्यक्ष फल है खुशी। तो खुशी हो रही है ना? यह प्रत्यक्ष फल अविनाशी रहे। सभी अच्छे सेवा का सबूत दे रहे हैं इसीलिए बापदादा कहते हैं सबूत देने वाले सपूत बच्चे। तो कितनों की दुआयें ली? दिल से सेवा करना अर्थात् दुआओं का दरवाजा खुलना। तो सेवा की अर्थात् दुआयें ली। तो दुआयें जमा करते जाओ। अच्छा।

आदि रत्न भी अच्छा सबूत दे रहे हैं। मधुबन वाले भी सेवा में अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। मधुबन वाले तो सदा बापदादा के साथ का अनुभव सहज करने वाले हैं। मधुबन अर्थात् मधुबन का बाबा। तो मधुबन वाले सदा बाप के साथ हैं। सेवा के लिए बापदादा सदा दिल से दुआयें देते हैं। हर एक बच्चों की सेवा बापदादा सदा देखते हैं। हर एक सेन्टर की सेवा का रिकार्ड बापदादा के पास रहता है। मधुबन का अपना, विदेश का अपना, भारत का अपना, बापदादा तो गीता पाठशालायें भी देखते हैं। आप लोग तो दो चार पांच जगह में चक्कर लगाते हो, बापदादा तो गीता पाठशाला का भी चक्कर लगाते हैं।

अच्छा गीता पाठशाला वाले उठो, खड़े हो जाओ। मुबारक हो। तीन पैर देकर तीनों लोकों के मालिक बन गये। चतुर निकले ना। दिया तीन पैर और लिया तीन लोक। बापदादा तो आपकी गीता पाठशालायें, क्लासेज़ का भी चक्कर लगाते हैं। दादियों को टाइम नहीं मिलता है ना इसीलिए बापदादा चक्र लगाते हैं। इसलिए तो अव्यक्त बने हैं ना। (दादी जी से) आपका काम भी अभी अव्यक्त रूप में बापदादा करता है।

बापदादा सब नोट करते हैं, गीता पाठशाला वाले, क्लास कराने वाले किस विधि से चलते हैं, किस विधि से सोते हैं, किस विधि से खाते-पीते हैं, सब नोट करता है। कहाँ-कहाँ ठीक नहीं होता है। गीता पाठशाला या कहाँ भी सेवा करने वाले हैं, वह स्थान विधि पूर्वक हो, स्वच्छ और मर्यादा पूर्वक भी हो। और जो भी दिनचर्या है, वह ब्राह्मण जीवन के नियम प्रमाण हो, ऐसे चलाओ नहीं, चलता है ....। बापदादा ज्यादा कहते नहीं हैं, समझते हैं थोड़ा मुश्किल लगेगा, इसीलिए कुछ बातें तो छोड़ देते हैं। छोड़ना चाहिए नहीं लेकिन छोड़ देते हैं। ऐसे कभी नहीं समझना कि कौन देखता है, फिर भी हिम्मत रखकर प्रवृत्ति में रहते सेवा के निमित्त बने हैं, यह बापदादा को देखकर खुशी होती है। बाकी चेक करना यह आपका काम है। बाप नहीं कहेंगे, आपका काम है। अगर बाप कहेंगे या दादियां कहेंगी ना तो चार-चार पेज का पत्र आयेगा, ऐसा है, ऐसा है... इसलिए बापदादा कहते नहीं हैं। इशारा देते हैं कि मर्यादापूर्वक अपने आपको चेक करो और चेंज करो। अच्छा। सभी एक दो से प्यारे हो ऐसे नहीं जो आगे बैठे हैं वह प्यारे हैं। आप उन्हों से भी प्यारे हो।

अच्छा-ओम् शान्ति।